Best कबीरदास के दोहे Kabirdas Ke Dohe Aur Arth in hindi

kabirdas ke dohe
Kabirdas Ke Dohe कबीर दास के दोहे काफी प्रसिद्ध और गंभीर हैं, यहाँ मैं कुछ अधिक प्रसिद्ध दोहों का संग्रह प्रस्तुत कर रहा हूँ | कुछ प्रसिद्ध कबीर दास के दोहे। ये दोहे उनकी अद्वितीय धार्मिक और सामाजिक दृष्टि को दर्शाते हैं।

kabirdas ke dohe in hindi

  1. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
    जो मन खोजा अपना, तो मुझसे बुरा न कोय।।
  2. दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करैं न कोय।
    जो सुख में सुमिरन करैं, तो दुख काहे को होय।।
  3. ज्ञानी को कूदा गुरु मारे, मूर्ख अंधा न होय।
    अंधेरा गहन अंधेरा, गुरु मिले ता रोय।।
  4. गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पांय।
    बलिहारी गुरु आपकी, जिन गोविन्द दियो बताय।।
  5. कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर।
    ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।।
  6. अवधु के गुन ना कहीये, एक खाली का ब्याह।
    जिनका जलता घर देखो, वे चितकारे जगह।।
  7. कबीरा अधम न बिसरै, जब लगुँ पाँव डार।
    बहुरि न उतरै, जब आँगन समीचा आपु बार।।
  8. कबीरा तेरा जग निराला, जीवे सागर की नाव।
    ये तो सितगुरु की नाव है, इसमें कौन समाव।।
  9. कबीरा तेरा मन ना फ़कीरा, जिसमें राम नाम नहीं।
    अंतर की बात कबीरा, सब को बताय बिना।।
  10. कबीरा सोई पीर है, जो जगत का मित्र होय।
    वो हमको भी दिखाइ दे, राम द्वारे के नोए।।
  11. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
    ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।
  12. निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।
    बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।
  13. चाहे सुंदर बाँट न पाया, चाहे सुंदर चढ़ाय।
    चाहे गरीब सो संतोषी, चाहे मानुष गर्वाय।।
  14. माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
    कबीरा जो गुबार में धूंधे, मुझसे बुरा न कोय।।
  15. कबीरा बड़ा खाने खान, ओजस को खावे।
    जा तुरन्त भागेगा, भूख रहे दो नावे।।
  16. कबीरा लाल मुख लगा, बूड़ा धार ना खाय।
    अगुआ बिछूँवा कीजिए, बिना ना देखे जाय।।
  17. कबीरा धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
    माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।।
  18. गुरु बिना ग्यान न उपजै, गुरु बिना भिक्षा न मिलै।
    गुरु बिना मन न लागै, गुरु बिना भैस न चलै।।
  19. जो तो स्वान का भात है, वही बजा खाए।
    आपे जीवन संवारे, यही जीवन न सजाए।।
  20. कबीरा जिन्हे नाम बाँधा, बढ़िया बुराई से लरे।
    जिन्हे सत्संग नहीं मिला, माया जिवित संसार में।। kabirdas ke dohe aur arth
  21. सुख ताली मिले तो क्या, छापा धरे न कोय।
    जो जीवन को परम सुख माने, वह सुख कहाँ होय।।
  22. नींद मुसाफिर, खाना बाज़ार, जगत का आलसी सार।
    कहे कबीर, बूझी न राती, राम नाम लिख रहे प्यार।।
  23. कबीरा खड़ा बाजार में, बाजार बाजार खार।
    जो चाहे लेलो माला, मुझसे बुरा न कोय।।
  24. कबीरा अंधा न सब कोई, हां अंधेरा न जानै।
    जो मुर्ख अंध भावै, सो नर बुद्धि बिखानै।।
  25. ज्यों त्यों मन मिले न राम, त्यों त्यों मन होय उदास।
    ज्यों त्यों मन मिले राम, त्यों त्यों मन होय प्रसन्न।।
  26. कबीरा सोई बिगड़ी बात, बिगड़ी बात समझै।
    बिगड़ा चित्त न बिगड़ै, जानत है जिस बात को।।
  27. कबीरा तेरा मन निरमल, जितन बाप सोई।
    अंतर की बात कबीरा, सब को बताय बिना।।
  28. राम रतन धन पायो, अनेक जतन करि धारी।
    जानत है मुरारि कृष्ण दस कबीर जन जहाँ भारी।।
  29. कबीरा जहाँ नहीं विराग, वहा पर समाधि न होय।
    जहाँ हैं समाधि ताही, जहाँ विराग रोय।।
  30. कबीरा जिनके हृदय में राम, उनके हृदय शिवाले।
    दिव्य गगन में बड़े, मानव में अवतार करे।।
  31. बिगड़ी है जो बिगड़ै, भला कैसे बिगड़ै।
    कहे कबीर कैसे बिगड़ै, जो पुरुष न जानै।।
  32. गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है, गड़ा गड़ी दोनों में।
    गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाय।।
  33. जैसे सोवै बैरी जल, बिना सोवे घन कोय।
    जैसे सोवै गुन अग्नि, बिना सोवे गुन होय।।
  34. कबीरा मन का मन्दिर, मखान चढ़ाए बिंदु।
    मूर्ती मिली जग में, तो मगन चित भयो हिन्दु।।
  35. रथ का निर्मल की बासी, सुभ भया गुदा राख।
    जब लड़कों में ताति गंगा, जब लड़कियों में राधा खैं।।
  36. जैसे सरस सुन्दर नर, धरी कठिन असार।
    जैसे भुजंग लीली कुंडली, फिरि बैठत मार।।
  37. बिगड़ा चाहे जो बिगड़े, लोगा न चुगा तोय।
    कबीरा साहिब चाहिये, घड़े मुख में होय।।
  38. गुरु बिन ग्यान न उपजै, ग्यान बिन मुक्ति न होय।
    गुरु बिन लाखों पाठका, माने न धरी कोय।।
  39. गुरु बिन भव सागर ना उतरे, गुरु बिन मूढ़ धरि खेल।
    गुरु बिन दांडी भूख ना बुझे, गुरु बिन विधि न होय।।
  40. कबीरा ना हरि के घाटे, ना हरि के मटेरे।
    हरि मिले तो मिले सुधी, बहुरि क्या चाहे डेरे।।
  41. बरबस गुरु न भाखिया, बाल न धरे पंजर।
    ताति ताति न चलै बाहिया, निज घर की बिहर।।
  42. कबीरा सब जग छाड़ के, जो तो मांगे प्यार।
    वह तो सतगुरु की सेवा, जो तो मांगे सुधार।।
  43. राम का नाम लो, मन में शांति होय।
    मन में शांति होय, तन में सुख होय।
  44. धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
    माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।
  45. राम नाम जपो, मन लागो राम नाम की बात।
    राम नाम की मधुर मिरा, मुख में लागो राम नाम।।
  46. अच्छा करिए, बुरा करिए, जैसे करने से तैसा।
    चाहे जैसा होवे, निज कर्मा के फल का भाईसा।।
  47. सच्चा तेरा दाम तुझमें, बाट बिगाड़े जाय।
    कबीरा सौ संगत सोई, सागर का नाम नहिं।।
  48. जैसे सुख दुख में नैनी दीन, तासो दुख में नैनी सात।
    जब सुख में मन नहीं मानै, तासो मानै काहू किसात।।
  49. राम बिना कैसे पावै, जिन राम रतन धार।
    अंतर की बात कबीरा, बाहर कहै संसार।।
  50. कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर।
    ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।।

kabirdas ke dohe in hindi

रविदास के दोहे के यहाँ पर क्लिक कीजिये click here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *